Friday, October 12, 2018

चिता पर लिटाते ही शव की चलने लगी नब्ज, श्मशान घाट में मची हलचल

हार के 'मोक्ष धाम' गया में मृतक को चिता पर लिटा दिया गया था. मुखाग्नि की तैयारी चल रही थी, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि लोग हैरान रह गए. श्मशान घाट में मृतक को जैसे ही चिता पर लिटाया गया, उसके बाद कुछ ऐसा घटित हुआ कि वहां पर उपस्थित लोग अचंभित हो गए. श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए लाया गया मृतक अचानक से जीवित हो गया जिसे देख कर आसपास के लोगों को आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और वहां भगदड़ मच गई. हैरानी इस बात की थी कि जिस व्यक्ति को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था, उसकी सांसें अचानक कैसे चलने लगीं.
गया के कुजापी गांव से मृतक का अंतिम संस्कार करने के लिए लोग गया के विष्णुपद आए थे. अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी. चिता सजाने के बाद जैसे ही मृतक को उस पर लिटा कर मुखाग्नि दी जाने लगी तो अचानक से शव में हलचल पैदा होने लगी. तभी वहां उपस्थित परिजनों ने आनन-फानन में मृतक को एएनएमसीएच में भर्ती कराया गया. जहां डॉक्टरों की निगरानी में जांच की गई. वहीं इस घटना की चर्चा पूरे इलाके में आग की तरह फैल रही है. हर व्यक्ति इसे भगवान का चमत्कार बता रहा है.
कुजापी गांव निवासी 80 वर्षीय रामकृत प्रसाद की मौत सोमवार सुबह 5 बजे हो गई थी. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. परिजन अंतिम संस्कार के लिए 12 बजे रामकृत प्रसाद को श्मशान घाट ले गए. जहां अंतिम संस्कार के लिए चिता बनकर तैयार हो गई थी. तभी परिजनों ने देखा कि नब्ज चल रहा है. आनन फानन में परिजनों ने डॉक्टर को बुलाया. जांच की गई तो जीवित बताया गया. उसके बाद परिजनों ने अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल ले गए जहां करीब 2 घंटे के इलाज के बाद डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
गांव के मुखिया प्रकाश कुमार ने बताया कि रामकृत प्रसाद की मृत्यु हो गई थी. इसीलिए हम लोग श्मशान घाट आए हुए थे. यहां आने के बाद देखा कि रामकृत प्रसाद की नब्ज चल रही है. इसके बाद हम लोग उन्हें मेडिकल लेकर गए. उनके अचानक जीवित होने की खबर आग की तरह फैल गई.स्थानीय लोग भी देखने पहुंच हुए है.'एक बार हम वहाँ पहुंच जाएंगे तो फिर हमारा बलात्कार किया जाएगा. हमें भी जला दिया जाएगा. हमारे बच्चों को काट दिया जाएगा. मेरी ससुराल में 10-15 लोग थे, सभी को काट दिया गया. कोई नहीं बचा. हमें फिर वहीं भेजा जा रहा है. हम मुसलमान हैं तो क्या इंसान नहीं हैं?''
अपनी बात ख़त्म करते हुए मनीरा बेगम की बदरंग सी आँखें डबडबा जाती हैं. हिज़ाब के कोने से आँखें पोंछते हुए वो ख़ुद को संभालती हैं.
दिल्ली के कालिंदी कुंज स्थित रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में रहने वाली मनीरा 15 दिन पहले पति को खो चुकी हैं.
अभी उनका मातम पूरा भी नहीं हुआ था कि अब उन्हें म्यांमार वापस भेजे जाने का डर खाए जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने चार अक्तूबर को रोहिंग्या मामले में दख़ल देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद केंद्र सरकार ने सात रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेज दिया.
इन सात लोगों को साल 2012 में गैरकानूनी तरीक़े से सीमापार करके भारत आने के आरोप में फ़ॉरनर्स एक्ट क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
पिछले छह साल से इन लोगों को असम की सिलचर सेंट्रल जेल में हिरासत में रखा गया था. इस घटना के बाद भारत में रह रहे लगभग 40,000 रोहिंग्या शरणार्थियों में वापस म्यांमार भेजे जाने का डर फ़ैल गया है.
दिल्ली की अलग-अलग बस्तियों में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को इस बात का ख़ौफ़ है कि उन्हें कभी भी हिंदुस्तान से निकाला जा सकता है.
उनका ये डर इसलिए और बढ़ गया है क्योंकि इस बीच दिल्ली पुलिस शरणार्थियों को एक फ़ॉर्म दे रही है. रोहिंग्याओं का आरोप है कि उनपर इसे भरने का दबाव बनाया जा रहा है.
उन्हें लगता है कि फ़ॉर्म के आधार पर जानकारी इकट्ठा करके सरकार उन्हें दोबारा म्यांमार भेजना चाहती है.
ये फ़ॉर्म बर्मी और अंग्रेज़ी भाषा में है. बर्मी भाषा के कारण इन लोगों का ख़ौफ़ और भी अधिक बढ़ा है. उनका कहना है कि ये फ़ॉर्म म्यांमार एंबेसी की ओर से भरवाया जा रहा है.
जामिया नगर थाने के एसएचओ संजीव कुमार ने ऐसे किसी भी फ़ॉर्म के बारे में बात करने से इनकार कर दिया.
पर एक सहायक सब-इंस्पेक्टर ने फ़ोन पर बताया कि "हमें ऊपर से ऑर्डर मिले हैं."
दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर चिन्मय बिसवाल ने बताया, ''वो भारतीय नहीं हैं. बाहर से आए लोग हैं. ऐसे में उनकी पूरी जानकारी तो हम जुटाएंगे.''
दिल्ली के कालिंदी कुंज स्थित कैंप में कुल 235 रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं और श्रम विहार में कुल 359 लोग रहते हैं.
इन लोगों को दिल्ली पुलिस की ओर से जो फ़ॉर्म दिया गया है उसमें व्यक्तिगत विवरण और उनकी म्यांमार से जुड़ी जानकारी मांगी जा रही है.
मसलन वे म्यांमार के किस गाँव से हैं, उनके घर में कौन-कौन लोग हैं, उनके अभिभावक का पेशा क्या है और उनकी नागरिकता इत्यादि.

Monday, October 1, 2018

水电和生物质燃料真的“清洁”吗?

可再生能源转型经常被形容为一个政治和经济的双重挑战,是一场需要调动大量投资、撼动化石燃料经济中既得利益群体的艰苦斗争。但另外一个挑战受到的关注则要少得多:我们是否有足够的土地和水来支撑可再生能源的生产。

生物质能、水能、风能、太阳能和地热能都需要占用大量的土地资源和水资源,而这些都是有限的。对不同的可再生能源获取方式及其所需要占用的土地和水量进行更深入的观察,可以发现哪些能源方式在长远上更加可行。
高度依赖化石能源,让 “能源短缺”成为威胁我们经济发展和国家安全的一个心头大患。可再生能源似乎可以解决这个问题,因为单是太阳辐射就已经远超我们的需要。

实际上,太阳辐射加上从风、水流、生物质和地球内部热力获取的能量似乎就可以为我们提供永不枯竭的能源。但不幸的是,这只是一种误解,生物质能的例子可以说明原因所在。

将生物质转化为生物燃料需要各种自然资源,包括肥沃的土地、水和能量。但是,目前能源密集型的农业实践导致所投入的能源不比所生产的生物燃料少多少。即便能够实现显著的能源净收益,我们仍然需要投入大量的土地和水资源。据我们估算,如果第一代生物乙醇代替全球交通运输行业所用的
化石燃料的 % ,全球用水需求就会增加6-7%。

尽管我们所消耗的大部分水都被用来生产食品,但如果用生物燃料大规模替代化石燃料的话,未来能源生产会用掉更多的水。下一代以非食品作物、废弃物或水藻为原料的生物燃料虽然会有一定改进,但依然会得出相似的结论:生产生物燃料比我们消费等量的化石燃料需要更多的土地和水,而这已经超出了可持续供应量。而我们的土地和水足迹现在就已经超过地球可负荷的水平。

这样一来,能源短缺将变成土地和水资源短缺。

水电站的生态足迹

水力发电占世界供电总量的16%左右,通常被视为一种清洁的能源形式。但这并不意味着我们可以一味地增加水电,因为大坝会给
河岸生态系统和社会带来严重影响。

建新大坝常常很困难,因为修建水库会导致另有用途的土地被淹没。中国修三峡大坝时,动迁了100多万人。水力发电也是一个耗水大户,因为水库会造成更大的蒸发,影响下游其他用途的可用水量。

其他形式的水力发电不需要修建大型水坝,它们依靠河水流动、海潮或河口的淡-海水盐度变化来发电。但这些只能是小规模的(至少从全球角度来看),而且由于此类能源的集中度较低,要将其集中起来成本高昂。

太阳能、风能和地热能

光伏和风力发电单位能量的水足迹是化石燃料和核电的百分之一到十分之一,地热发电也只有化石燃料的十分之一;然而集中式太阳能发电的水足迹与化石燃料相近,水力发电和生物质能则达到100到1000倍。

从水资源短缺的角度来说,我们究竟应该从化石燃料向生物能和水能,还是向太阳能、风能和地热能转化,真的非常重要。所谓的“绿色能源”发展方案却包含着生物能和水电的大幅增长,按照这种方案发展的话,能源产业的水足迹将“突破天际”。
为了实现真正的绿色转型,能源发展方案必须实现水足迹的不断减小,因此其主要发展方向应该是太阳能、风能和地热能。

从燃料到电力

当然,土地足迹同样重要。太阳能比生物质能更加高效,因为光伏板和集中式太阳能发电系统能比光合作用更有效地获取入射太阳辐射,因此每平方米产生的能量就更多。尽管光合作用的主要优势是生产出的是可储存能源,并且可以将其转化为高能量密度的生物燃料,而光伏生产出的是不可储存的电力。集中式太阳能发电系统也能利用热储能来储存能量,但其最终产品仍然是电力,而非燃料。

除了利用有机物质废料,其他形式的生物能
并不是替代化石燃料的可持续方式。所以,我们不得不接受未来能源经济将日益依赖电力的事实。这意味着电力输送的重要性,也凸显了电采暖的光明未来,至少在那些工业或地热能多余热量无法解决采暖需求的地方。

这样的变化带来了新的挑战:如何储存能源,以及如何设计出能够应对电力供求巨大波动的电网。

太阳能、风能和地热能让我们有可能提升能源自给度,但相比我们在全球化的化石燃料经济的巨大规模,这些能源形式的规模小而分散。随着我们日益摆脱化石燃料,衷心希望我们有足够的智慧将投资注入那些真正可持续的解决方案,而不是将生物燃料如此高高置于政府政策的核心地位。经济的去碳化和降低水足迹可以是并行不悖的。