Tuesday, September 11, 2018

राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई चाहता है तमिलनाडु

तमिलनाडु की ई पलनीसामी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में दोषी ठहराए गए सात लोगों को रिहा कराने के लिए प्रस्ताव पास किया है.
राज्य की कैबिनेट इस दोषियों को रिहा करने की सिफ़ारिश राज्यपाल के पास भेजेगी. ये सातों दोषी पिछले 27 सालों से जेल में बंद हैं.
2014 में प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने इनकी रिहाई का फ़ैसला किया था पर केंद्र सरकार ने इसे ख़ारिज कर दिया था. sex
सुप्रीम कोर्ट ने सातों दोषियों की रिहाई पर राज्यपाल को फ़ैसला लेने के लिए कहा था. राज्य सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आधार पर ही प्रस्ताव पास किया गया है.
राजीव गांधी की हत्या धानु नाम की एक आत्माघाती महिला हमलावर ने की थी. वो महिला एलटीटीई की सदस्य थी. एलटीटीई सशस्त्र विद्रोही समूह था जो श्रीलंका में तमिलों के लिए एक अलग देश की मांग कर रहा था.
तमिलनाडु के मतस्य पालन मंत्री डी जयकुमार ने कैबिनेट की बैठक के बाद कहा, ''हमलोग ने फ़ैसला किया है कि सातों दोषियों की रिहाई के लिए राज्यपाल के पास सिफ़ारिश भेजेंगे. यह सिफ़ारिश संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत भेजी जाएगी. राज्यपाल इसे स्वीकार करेंगे क्योंकि उनके पास कोई विक्लप नहीं होगा.''
शुरुआत में राजीव गांधी की हत्या में 26 लोगों को फांसी की सज़ा मिली थी. बाद में कइयों की मौत की सज़ा आजीवन क़ैद में तब्दील हो गई थी. इस मामले में राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और बेटे राहुल गांधी ने भी मौत की सज़ा को आजीवन क़ैद में तब्दील करने में मदद की थी.
21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बुदुर में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एक चुनावी रैली के दौरान आत्मघाती हमलावरों ने हत्या कर दी थी.
ये हत्यारे श्रीलंका से आए थे. तभी से इंसाफ़ का पहिया आहिस्ता-आहिस्ता घूमता रहा है. इस मामले में जिन्हें सज़ा सुनाई गई, वे 27 साल से सलाखों की पीछे हैं.
ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स राज्य के विंडसर शहर में रहने वाली 33 साल की एलिज़ाबेथ ब्रूक और उनके 32 वर्षीय पति एडम ब्रूक इस बात से बेहद खुश हैं कि ऑस्ट्रेलिया ने भारत के साथ अडॉप्शन प्रोग्राम (गोद लेने का कार्यक्रम) दोबारा शुरू करने की सिफ़ारिश की है.
एलिज़ाबेथ जब 14 साल की थीं तब उन्हें पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम हो गया था. इस बीमारी की वजह से एलिज़ाबेथ कभी गर्भधारण नहीं कर सकतीं.
वे कहती हैं, ''इस कार्यक्रम ने हमारे लिए उम्मीद की एक नई किरण जगाई है, हम अपना परिवार शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं.''
यह एक इत्तेफ़ाक ही है कि जब एलिज़ाबेथ को अपने प्रजनन के बारे में जानकारी मिली, उसी समय उन्होंने टीवी पर बॉलीवुड फ़िल्म राजा हिंदुस्तानी देखी थी.
एलिज़ाबेथ कहती हैं, ''उस फ़िल्म ने मेरे दिमाग में भारत की एक अलग ही छवि बना दी. मुझे भारतीय खाना, कपड़े और फ़िल्में पसंद आने लगा. उसके बाद मैं अपनी बहन के साथ भारत गई, फिर अपने पति एडम के साथ भी दो बार भारत गई. हमने तय किया था कि हम भारत से एक बच्चा गोद लेंगे.''
अक्टूबर 2010 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत के साथ चलने वाले अडॉप्शन प्रोग्राम पर रोक लगा दी थी. दरअसल उस समय ऐसे आरोप लगे थे कि इस इंटर-कंट्री अडॉप्शन प्रोग्राम के तहत बच्चों की तस्करी हो रही है. इस तस्करी के पीछे भारत की कुछ जानी मानी कंपनियों का नाम सामने आया था. sex
इसके बाद भारत ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 और अडॉप्शन रेग्युलेशन 2017 के तहत भारत में दूसरे देशों के नागरिकों के लिए बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया में सख्त कर दिया.
एलिज़ाबेथ का परिवार काफ़ी उदार विचारधारा वाला रहा है और वे अलग-अलग संस्कृतियों और धर्मों के बीच बड़ी हुई हैं. एलिज़ाबेथ कहती हैं, ''ऑस्ट्रेलिया में भारत का बच्चा गोद लेने वाला कार्यक्रम शायद इस साल के अंत तक शुरू हो जाए, अगर सबकुछ ठीक से होता है तो आने वाले तीन साल में हमारे पास बच्चा होगा.''
ऑस्ट्रेलियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ एंड वेलफ़ेयर (एआईएचडब्ल्यू) की 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार किसी जोड़े के लिए दूसरे देश का बच्चा गोद लेने में औसतन 2 साल 9 महीने तक का वक़्त लगता है.
एलिज़ाबेथ और एडम ने भारत की सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स ऑथोरिटी (सीएआरए) की तत्काल प्लेसमेंट श्रेणी के तहत दो या तीन बच्चों को गोद लेने के बारे में सोचा है.
वैसे तो ऑस्ट्रेलिया-भारत इंटरकंट्री अडॉप्शन प्रोग्राम दोबारा शुरू होने को है लेकिन इस बीच ऑस्ट्रेलिया में सोशल सर्विस विभाग के प्रवक्ता ने बताया है कि इस कार्यक्रम के तहत अभी कोई अपील दर्ज़ नहीं की जा रही है.
प्रवक्ता के अनुसार, ''फिलहाल ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन को इस कार्यक्रम को दोबारा शुरू करने के लिए एक नई प्रक्रिया का गठन करना होगा, इसमें अभी थोड़ा वक़्त लगेगा. तभी भारत के पास यहां से बच्चा गोद लेने के आवेदनों को भेजा जा सकेगा. कोई भी कार्यक्रम जिसे दोबारा शुरू किया जाता है उस पर प्रशासन अपनी कड़ी नज़र रखता है ताकि कहीं कोई गड़बड़ी ना हो जाए.''

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